बाबा साहब भीम राव आंबेडकर लाइफ एंड मिशन :- 1






 विनम्र निवेदन

यह कोई कहानी नहीं बल्कि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की जीवन गाथा है जिसे मैने “ बाबासाहेब आंबेडकर लाइफ एंड मिशन “ किताब से लिया है

आप हर रोज एक बिन्दु उनके बारे में पढ़े और अपने विचार भी Coment बॉक्स में जरूर लिखें। 🙏

राजस्थान के मारवाड़ इलाके के पाली जिले में अरावली की तलहटी में बसा हुआ एक छोटा सा गांव है, करणवा। मानव चांद सितारों पर पहुंच गया, साइंस व टेक्नोलोजी ने नई बुलंदियों को छू लिया है लेकिन यह इलाका आजादी के इतने लंबे अरसे बाद भी मानो पाषाण युग में जी रहा है। जात-पांत, छुआछूत, भेदभाव, ऊंच-नीच, धार्मिक अंधविश्वास व सामाजिक कुरीतियों के कारण यहां का समाज आज भी बुरी तरह से सड़ांध मार रहा है। दलितों वंचितों को तो पग पग पर अन्याय, अपमान व तिरस्कार का सामना करना पड़ा है। हाड़ तोड़ मेहनत के बावजूद भी दलितों के जीवन में अशिक्षा, गरीबी व दरिद्रता ही रही। सामंतवाद की जड़ें गहराई तक जमी हुई थी। जुल्म व शोषण से दबे वंचित समाज को उबरने का अवसर ही नहीं मिला। फिर खुद दलित समाज भी अपनी सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों व अंधविश्वासों के कारण गरीबी के रसातल की ओर धंसता गया। दूर-दूर तक शिक्षा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी। लगभग सारी अनुसूचित जातियों के लोगों की जिंदगी एक मरे पशु के आसपास ही सिमट कर रह गई थी।

ऐसे विकट माहौल में भी कबीर अनुयायी मेरे अनपढ़ माता-पिता ने मुझे स्कूल की चौखट तक भेज ही दिया। स्कूल क्यों भेजना और पढ़ लिखकर क्या करना, यह किसी को कुछ पता नहीं था। इसके बाद सातवीं कक्षा के लिए दूर कस्बे में जाना पड़ा। यहां एक सरकारी छात्रावास में रहकर आगे की पढ़ाई जारी रखी। बस, यहां रहना ही जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया। यहीं पर पहली बार हमारे मुक्तिदाता बाबासाहेब अंबेडकर के नाम का पता चला। बाद में कबीर, बुद्ध आदि को जाना और माना, फिर आगे जाकर तो मानो मेरी दुनिया ही बदल गई। इस छात्रावास में आया तो इसलिए था कि यहां रहना खाना सरकार की ओर से निःशुल्क था लेकिन यहां रहते हुए पहली बार डॉ. भीमराव अंबेडकर के चित्र के दर्शन हुए। होस्टल वार्डन के ऑफिस में बाबासाहेब की बड़ी रंगीन तस्वीर लगी हुई थी। वार्डन अक्सर कहते थे कि यह गरीबों व उपेक्षितों के असली भगवान का चित्र है। और खास बात यह है कि वह अछूत कहे जाने वाले हमारे समाज में ही पैदा हुए थे। टाई सूट के साथ सुंदर, आकर्षक, प्रतिभाशाली व स्वाभिमान से भरे ऐसे बाबासाहेब के बारे में जानकर हम सभी बालकों का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता था।

हम सभी इनके बारे में और अधिक जानकारी लेते रहते थे। इन्होंने संविधान बनाया लेकिन उस समय तक मुझे यह मालूम नहीं था कि संविधान क्या होता है। जब यह बताया गया कि डा. भीमराव ने अछूत समाज के सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक अधिकारों के लिए बहुत संघर्ष किया, दुख झेले तथा खुद अभावों में रहकर अछूतों को बराबरी का अधिकार दिलाया, जिसके कारण हमारे घरों में शिक्षा की किरण पहुंची। हमें यह भी बताया गया कि स्कूल में हमारी फीस आधी लगती है और छात्रावास में सारी निःशुल्क सुविधाएं बाबासाहेब के प्रयासों के ही कारण मिल रही है। यह जानकर इस महामानव को बार-बार नमन करने की इच्छा होती थी। बाबासाहेब के बारे में ज्यों-ज्यों पढ़ता गया इनके प्रति सम्मान व श्रद्धा बढ़ती गई। अछूतों, मजदूरों, किसानों, महिलाओं केकल्याण के साथ देश के इस महान सपूत द्वारा देश के संविधान निर्माण तथा बाद में सामाजिक व आर्थिक विकास में जो श्रेष्ठ योगदान दिया। देश दुनिया में उन्होंने उच्चतम शिक्षा ग्रहण कर मानव जीवन को सार्थक बनाने का जो महान कार्य किया है, उसे जानकर तो मेरी श्रद्धा राई से पर्वत बन गई। ऐसे विराट महापुरुष माध्यम से ही मुझे बुद्ध, रैदास, कबीर व फुले जैसे मानवतावादी आदशों को पढ़ने जानने का अवसर मिला और अपने जीवन का मकसद जान पाया।

आज बाबासाहेब को बार-बार नमन करता हूं कि उन्होंने हमें महामानव बुद्ध से मिला दिया वरना हमारा जीवन महाकारूणिक तथागत के करूणा, प्रज्ञा, शील व मैत्री के मानवतावादी धम्म का स्वाद चखे बिना कोरा ही रह जाता। उन्होंने हमें अंधविश्वासों, कुरीतियों व मानव कल्याण से परे निरर्थक बातों के जाल से छुटकारा दिलाया और इसी जीवन को खुशहाल बनाने का मार्ग दिखाया। उपेक्षित, वंचित पीड़ित व दुखी प्राणी के दुख हरण के लिए प्रेरित किया। बाबासाहेब ने हमें घनघोर अंधेरे से निकालकर हमारे जीवन में बुद्ध व उनके धम्म का उजियारा फैलाया। वह आज भी जिंदा है और कल भी जिंदा रहेंगे। वह हमारी वैचारिक पूंजी की विरासत है।

देश दुनिया में अब लोगों की वैज्ञानिक सोच बढ़ रही है। मानव प्रगति में बाधक रूढ़ धारणाओं से परे तर्क, विवेक, विज्ञान व मानव हित पर ज्यादा जोर देने लगे है। समाज व देश के लिए बाबासाहेब के योगदान को ईमानदारी से समझने लगे है। ऐसे में डा. अंबेडकर के संघर्षमयी व मानवतावादी जीवन को खरा-खरा सामने लाना बहुत जरूरी है। उनके प्रति नफरत के भाव रखने वाले लोगों को यह बताना जरूरी है कि देश दुनिया से उच्चतम शिक्षा हासिल करने के बावजूद, धर्म व जाति के नाम पर पग-पग पर प्रताड़ित व अपमानित होने के बाद वह व्यक्ति इस देश व समाज से कितना प्यार करता था। उनके मन में इस देश की खुशहाली के लिए कितनी बड़ी ललक थी। इस पुस्तक लेखन का मकसद यही है। हर नागरिक में 'पै बैक टू सोसायटी' का भाव जगाना है।

बाबासाहेब के इस विराट स्वरूप को सिर्फ बुद्धिजीवी तबके तक ही नहीं बल्कि गांव के उस साधारण व्यक्ति को भी बताना है, जिसके मन में बाबासाहेब के प्रति गलत धारणाएं भर दी गई है। उन्होंने न तो बाबासाहेब के जीवन संघर्ष को पढ़ा और न ही देश के लिए उनके महान योगदान को जानने की कोशिश की। उन तक पहुंचाना जो इनके जीवन व मिशन को जानकर प्रेरणा लेना चाहते हैं। मेरे लिए यह गौरव व सम्मान की बात है कि मुझे बाबासाहेब के संघर्षमयी जीवन को सहज सरल व प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करने के इस पुनीत कार्य का भागीदार होने का सुअवसर मिला। डा. अंबेडकर की जीवनी को जितनी बार पढ़ो, उतनी ही बार नई प्रेरणा व ज्योति मिलती है।

देश दुनिया का माहौल तेजी से बदल रहा है यदि समय की रफ्तार के साथ नहीं चलकर हम मानव कल्याण से परे निरर्थक मुद्दों में ही उलझे रहे तो बहुत पिछड़ जाएंगे। सामाजिक कुरीतियों व धार्मिक अंधविश्वासों के जाल को काटते हुए समाज में आपसी प्रेम व भाईचारा बढ़े, यही डॉ. भीमराव का सपना था। समाज व देश की खुशहाली में सभी भागीदार बनें, जिसके लिए भारतरत्न बाबासाहेब अंबेडकर जैसे व्यक्तियों का मार्ग अपनाया जाए, यही इस पुस्तक लेखन का उद्देश्य है। और हां, इस किताब में मेरा अपना कुछ नहीं है। देश के विचारकों और चिंतकों ने बाबासाहेब के बारे में जो कुछ भी सोचा, समझा व चिन्तन किया है, मैं तो एक माध्यम के रूप में सिर्फ उसे आप तक पहुंचाने का काम कर रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि यह रचना आपको खूब भाएगी और इसको घर-घर पहुंचाने में आप भी भागीदार बनेंगे।

जयपुर, 14 अप्रैल, 2017

- एम.एल. परिहार

प्रस्तुत करता amaguru.com


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